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Birth anniversary of Lala Lajpat Rai This Post Design By The Revolution Deshbhakt Hindustani

Birth anniversary of Lala Lajpat Rai

भारत मां को वीरों की जननी कहा जाता है। इस धरती पर कई ऐसे वीर सपूत हुए हैं, जिन्होंने अपने जीवन की परवाह न करते हुए, देश को आजाद कराने के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। ऐसे ही एक स्वतंत्रता सेनानी- शेर-ए-पंजाब, लाला लाजपत राय, जिन्होंने भारत की सरजमीं को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गरम दल के तीन प्रमुख नेताओं लाल-बाल-पाल में से एक थे। आज देश उनकी 158वीं जयंती मना रहा है, तो आइये एक नजर डालते हैं उनके जीवन पर। पंजाब केसरी लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी, 1865 को फिरोजपुर, पंजाब में हुआ था। उनके पिता मुंशी राधा कृष्ण आजाद- फारसी और उर्दू के महान विद्वान थे और माता गुलाब देवी धार्मिक महिला थीं। प्रारंभ से ही लाजपत राय लेखन और भाषण में बहुत रुचि लेते थे। इन्होंने कुछ समय वकालत भी की। 1897 और 1899 में उन्होंने देश में आए अकाल में पीड़ितों की तन, मन और धन से सेवा की। स्थानीय लोगों के साथ मिलकर अनेक स्थानों पर अकाल में शिविर लगाए। इसके बाद जब 1905 में बंगाल का विभाजन किया गया था, तो लालाजी ने सुरेंद्रनाथ बनर्जी और विपिनचंद्र पाल जैसे आंदोलनकारियों से हाथ मिला लिया और इस तिकड़ी ने ब्रिटिश शासन की नाक में दम कर दिया था । लाल-बाल-पाल के नेतृत्व को, पूरे देश में भारी जनसमर्थन मिल रहा था। इन्‍होंने अपनी मुहिम के तहत ब्रिटेन में तैयार हुए सामान का बहिष्कार और व्यावसायिक संस्थाओं में हड़ताल के माध्यम से ब्रिटिश सरकार विरोध किया। स्वावलंबन से स्वराज्य प्राप्ति के पक्षधर लालाजी अपने विचारों की स्पष्टवादिता के चलते उग्रवादी नेता के रूप में काफी लोकप्रिय हुए।

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महान समाज सेवी लालाजी ने अक्टूबर 1917 में अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में इंडियन होम रूल लीग ऑफ अमेरिका नाम से एक संगठन की स्थापना की। इस संगठन के माध्यम से वे स्वाधीनता की चिंगारी को लगातार हवा देते रहे। 1920 में जब वे भारत लौटे तो देशवासियों के लिए एक महान नायक बन चुके थे। उन्हें कलकत्ता में कांग्रेस के खास सत्र की अध्यक्षता करने के लिए आमंत्रित किया गया। जलियांवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ, उन्होंने पंजाब में ब्रिटिश शासन के खिलाफ उग्र आंदोलन किया। जब गांधीजी ने 1920 में असहयोग आंदोलन छेड़ा, तो उन्होंने पंजाब में आंदोलन का नेतृत्व किया और कांग्रेस इंडिपेंडेंस पार्टी बनाई। 3 फरवरी 1928 को साइमन कमीशन जब भारत पहुंचा, तो उसके शुरुआती विरोधियों में लालाजी भी शामिल हो गए। साइमन कमीशन भारत में संवैधानिक सुधारों की समीक्षा एवं रपट तैयार करने के लिए बनाया गया था, जिसका पूरे देश में जबरदस्त विरोध देखने को मिला। चौरी चौरा कांड के बाद गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन वापस ले लिया गया, जिससे आजादी की लड़ाई में एक ठहराव आ गया था! साइमन कमीशन के आ जाने से लोग फिर से सड़कों पर निकल कर आने लगे और देखते ही देखते पूरा देश "साइमन गो बैक " के नारों से गूंज उठा।!

साइमन कमीशन के विरोध में क्रांतिकारियों ने 30 अक्टूबर 1928 को लाहौर में एक विरोध प्रदर्शन का आयोजन कर रखा था। जिसका नेतृत्व लालाजी कर रहे थे। इस प्रदर्शन में उमड़ी जनसैलाब को देखकर अंग्रेज बुरी तरह बौखला गए थे। इस प्रदर्शन से डरे अंग्रेजों ने लालाजी और उनके दल पर लाठीचार्ज करवा दिया। इस लाठीचार्ज में लालाजी बुरी तरह घायल हो गए, जिसके बाद उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और आखिरकार 17 नवंबर 1928 को इस वीर ने हमेशा के लिए आंखे मूंद ली।, उन्हें चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारी अपना आदर्श मानते थे। जब उन्हें पता चला कि अंग्रेजों ने बेरहमी से पीट कर लालाजी को मार डाला, तो वे उत्तेजित हो उठे और लालाजी की मौत का बदला लेने के लिए 17 दिसंबर 1928 को ब्रिटिश पुलिस अफसर सांडर्स को गोली मार दी गई। बाद में सांडर्स की हत्या के मामले में ही राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह को फांसी की सजा सुनाई गई। इसके बाद तो आजादी की मुहिम लगातार तेज होती गई। आजादी के दिवाने इस पंजाब के शेर को हम जितना धन्यवाद दें, उतना कम है। किसी भी देश का इतिहास उसके वर्तमान और भविष्य की प्रेरणा, और उसका एक पथप्रदर्शक है। लाला लाजपत राय जी ने कहा था कि "एक इंसान को, सांसारिक लाभ की चिंता छोड़कर, सत्य की पूजा करने में साहसी और ईमानदार होना चाहिए।" द रेवोलुशन देशभक्त हिंदुस्तानी की ओर से मैं, सिर्फ यही कहना चाहूंगा कि आइए, सच और ईमानदारी से, नए भारत के रेवोल्यूशन का हिस्सा बनें। लाला लाजपत राय जी की जयंती पर, उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।